बेहद रोचक है। 5000 साल पुराना चाय का इतिहास!

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चाय पर चर्चा,सुबह की चाय, शाम की चाय, मेहमान आए तो चाय, बदन दर्द में चाय, सर्दी जुखाम में चाय, बस हर जगह चाय ही चाय!!हम भारतीयों के लिए चाय जीवन का हिस्सा बन चुका है ।

क्या आपने कभी सोचा है कि चाय पीने की शुरुआत कहां से हुई?किसने की और कब की? नहीं सोचा तो चलिए ,हम आज आपको TOP GYAN के  इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे चाय का रोचक इतिहास!

आपको जानकर हैरानी होगी कि चाय सैकड़ों साल नहीं बल्कि हजारों साल पुराना है। चाय का इतिहास करीब 5000 साल पुराना है।

चाय का इतिहास…

चाय का इतिहास चीन के सम्राट और भगवान बुद्ध से जुड़ा हुआ है।

यह बात करीब 5000 साल पुरानी है। कहा जाता है कि चाय की खोज और उसे पीने की शुरुआत सबसे पहले चीन में हुई थी।चलिए मैं आज आपको चाय के इतिहास शुरू से बताता  हूं।

चीन के सम्राट ने चाय की खोज की…

उस समय जब चीन के सम्राट का नाम शेन नुग्न था। वे अपने आप को तंदुरुस्त रखने के लिए हर शाम को गार्डन में टहलने के बाद गर्म पानी पिया करते थे।

1 दिन की बात है जब वे अपने दिनचर्या का पालन करते हुए गार्डन में बैठकर गरम पानी पी रहे थे। उनके आसपास मंत्री भी बैठे हुए थे। वे मंत्रियों से बातचीत करने में व्यस्त हो गया इतने में ही झाड़ियों से कुछ पटिया टूट कर उनके गर्म पानी में गिर गई। उन पतियों की वजह से पानी का रंग सुनहरा हो गया और खुशबू अच्छी आने लगी।

History of tea

सम्राट  देख चौक गये उन्होंने इस पानी को पीने के लिए गए।

तभी मंत्रियों ने कहा: महाराज यह पौधा जहरीला हो सकता है। आप इसे ना पिए। सम्राट ने मंत्रियों की और कुछ देर देखा और उनकी बात को अनसुना करते हुए वह गरम पानी पी गए। जिससे उन्हें अच्छा महसूस हुआ और ताजगी का अनुभव करने लगे । उन्हें यह चीज काफी पसंद आयी  इसके लिए वह रोज इस पतियों को गर्म पानी में डालकर पीने लगे धीरे-धीरे महल के सभी लोग इस पत्तियों को गर्म पानी में उबालकर पीने लगे।  यह चीन के राजघराने से निकलता हुआ चीन के प्रजा के पास पहुंच गया।

“दरअसल यह पत्तियों और कुछ नहीं,बल्कि चाय की पत्ती थी”

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काफी सालों तक चीन से नहीं निकला चाय

चाय की खोज हो जाने के बाद यह चीन के लोगों का भी प्रिय पेय पदार्थ बन गया था। जब भी कोई विदेशी मेहमान चीन में आता था तो वह लोग उसे चाय पिलाते थे।

राजा की तरफ से सख्त आदेश था कि वह चाय की रेसिपी किसी को ना बताएं।

इसी वजह से हजारों सालों तक चाय की पत्तियां चीन तक ही सीमित रह गई। और इस अद्भुत चाय का स्वाद दुनिया नहीं चख पाई।

Tea

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बौद्ध भिक्षुओं ने चाय की पत्तियों का सहारा लिया।

चीन के भिक्षुओं के लिए चाय किसी वरदान से कम नहीं था। वे लोग चाय की पत्तियों को उबालकर पीने लगे क्योंकि इसे पीने के बाद उन्हें घंटों तक नींद नहीं आती थी और वे ध्यान कर पाते थे।

भले ही चीन ने हजारों सालों तक चाय को दुनिया से छुपाए रखा मगर। बौद्ध भिक्षुओं अपने साथ कुछ चाय की पत्तियां रखते थे। वे जहां-जहां ध्यान करने गए वहां चाय पी और आसपास के लोगों को पिलाई।

इसीलिए बौद्ध भिक्षुओं की वजह से चाय नेपाल,भारत, भूटान और जापान तब चाय पहुंच गई मगर अभी भी चाय केवल कुछ लोगों तक ही सीमित रह गई

भारत में चाय का इतिहास…

जब भगवान महावीर ज्ञान प्राप्ति के मार्ग पर थे।वे  बौद्ध भिक्षुओं से ज्ञान लेते समय उन्हें चाय के बारे में पता चला। वह भी अपने ध्यान के दौरान चाय की पत्तियों को चबाते थे जिससे उन्हें ताजगी महसूस होती थी और वह घंटों तक बिना सोए ध्यान कर सकते थे।

उन्होंने असम के जंगलों में चाय के पौधे को ढूंढ निकाला और स्थानीय लोगों को इसके गुण बताया।स्थानीय लोग इससे ताकत और ताजगी के लिए काढ़ा बनाकर पीने लगे।

  तो कुछ इस तरह भगवान बुद्ध और महावीर के कारण  चाय भारत में आ सका। मगर अभी भी एक समस्या यह थी कि यह केवल असम के लोगों तक ही सीमित थी।

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असम से पूरे भारत में चाय कैसे पहुंचा?

भले ही भगवान महावीर और बुद्ध की वजह से चाय आसाम में पहुंचा। मगर पूरे भारत के लोग इस से परिचित नहीं थे। चाय को पूरे भारत तक पहुंचाने का श्रेय अंग्रेजों को जाता है। दरअसल बात कुछ ऐसी है कि चीन से निकलने के बाद चाय जापान होते हुए इंग्लैंड पहुंची। इंग्लैंड के लोगों को चाय का स्वाद बहुत पसंद आया।

चाय के लिए पूरी तरह से जापान पर निर्भर थे। क्योंकि मांग ज्यादा थी इसके लिए अंग्रेजों को चाय पीने के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ती थी। जापान भी चाइना से चाय की पत्ती को तस्करी के जरिए लाकर इंग्लैंड को बेचता था। जिसमें जापान को भी भारी मुनाफा होता था।

इसी बीच अंग्रेजों को “सोने की चिड़िया” हाथ लगी यानी कि  भारत। ऐसा माना जाता है कि उन्हें खजाने के साथ-साथ चाय का भी खजाना मिला।

जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने असम के लोगों के खानपान के ऊपर रिसर्च किया। तो उन्हें पता चला कि असम के लोग काले रंग का काला पीते हैं। जिससे वह ताजगी महसूस करते हैं। अंग्रेजों को यह शक हुआ कि हो ना हो या चाय की पत्ती का ही है!!जांच के बाद यह साबित हो गया जी यह काढ़ा चाय ही है। यह बात का पता चलते ही अंग्रेजों की खुशी का ठिकाना ना था।

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1835 में भारत में पहला चाय का बागान लगा।

असम के आम नागरिकों की सहायता से जंगलों में से चाय के पौधे को पहचान कर 1835 में इसका पहला बागान लगाया गया।चीन से व्यापारिक समझौते के तहत कुछ चाय के बीजों को  भी लगाया गया।

भारतीय चाय अंतरराष्ट्रीय बाजार की पहली पसंद

अंग्रेजों ने असम के साथ-साथ दार्जिलिंग और दक्षिण भारत में भी चाय के बागान लगवाए। भारतीय चाय पूरी दुनिया में प्रसिद्ध होने लगी। क्योंकि चाय का पौधा भारतीय मिट्टी के लिए अमृत समान था। अंग्रेजों को भी चाय को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचकर भारी मुनाफा हो रहा था।  उनकी चाय की कमी भी पूरी हो गई थी। इसी तरह धीरे-धीरे भारतीय लोगों को भी चाय का पता चला और वह भी अपनी दिनचर्या में चाय का उपयोग करने लगे। हालांकि यहां अमीर भारतीय और राजा महाराजा ही चाय पिया करते थे।

1947 में अंग्रेजों के जाने के बाद भारतीय सरकार ने चाय का व्यापार जारी रखा इसके लिए उन्होंने ‘टी बोर्ड’ का गठन किया। जिसके जरिए चाय को विदेशों में बेचना काफी आसान हो गया था। स्थानीय मजदूरों को भी अच्छा खास का रोजगार मिल जा रहा था। चाय के उत्पादन का 70% खपत भारत में ही था।  बाकी बचा हुआ विदेशों में बेचा जाता था।  भारतीय चाय की मांग पूरी दुनिया में बढ़ती ही जा रही थी।  पूरी दुनिया भर्तियों चाय की दीवानी बनती जा रही थी

टी बैग की खोज कैसे हुई?

कहते हैं आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। टी बैग के ऊपर भी यही बात लागू पड़ती है। दरअसल अंग्रेज खाने-पीने के मामले में साफ-सफाई रखते थे। उन्हें चाय की पत्तियों को हाथ से छू ना पसंद नहीं था। इसके लिए वे एक धातु के डब्बे में चाय की पत्तियों रख देते थे।  उसमें एक छेद बना देते थे जिससे गर्म पानी चाय की पत्तियों से मिल जाती थी। इसमें भी यह समस्या की की चाय की पत्ती के डब्बे को हाथ से ही निकालना पड़ता था। अंत में यह तरीका ज्यादा दिन तक नहीं चला।

बाद में किसी ने यह उपाय लगाया कि चाय की पत्तियों को पेपर में बंद करके उसे रस्सी के साथ चिपका दिया जाता था। जिससे वह चाय की पत्तियों को सीधे कप में डाल देते थे। पर इसमें सबसे बड़ी समस्या आती थी, कि गर्म पानी में मिलते ही रस्सी से लगाया गया गम निकल जाता था। चाय का स्वाद बिगड़ जाता था।

अंत में सबसे कारगर तरीका सामने आया 1901 में अंग्रेजों की दो महिलाओं ने कपड़े की थैली में चाय की पत्तियां भरी और उसे  धागे से बांध दिया। इस चीज को नाम दिया ‘टी लीफ होल्डर’।

1908  आते-आते टी बैग की मांग पूरी दुनिया में बढ़ने लगी।उस समय चाय व्यापारी सीधे रेशम के कपड़ों में चाय की पत्तियों को बांध देता था।  चाय पीने वाला आदमी सीधे उस कपड़े को गर्म पानी में डूबा देता था। इस पर चाय सेकंड हो में बनकर तैयार हो जाती थी।

आज भी मशहूर है भारतीय चाय…

भारतीय चाय आज भी उतना ही मशहूर है। जितना अंग्रेजों के समय था। अकेले भारत में 50 तरह की चाय उगाई जाती है। वर्तमान समय में चाय उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर है। जबकि पहले स्थान पर चाइना का नाम आता है अब तो चाय के पाउडर का इस्तेमाल दवाई बनाने में भी होने लगा है ।

मेरे विचार

इस पोस्ट को लिखने के बाद मैं जब भी चाय पीता हूं तो मुझे चाय को सैल्यूट करने का मन करता है। क्योंकि इतना कितना लंबा इतिहास देखा है। मेरे ख्याल से सम्राट शेन नुग्न ना होते तो आज दुनिया चाय से परिचित न होती!

आखिरी शब्द

तो आज मैंने आपको बताया चाय का इतिहास ! कैसे चीन के सम्राट के पास से निकलते हुए चाय पूरी दुनिया में फैला और आम जनता के लिए पेय पदार्थ बना। आशा करता हूं आपको मेरा यह आर्टिकल पसंद आया होगा

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