डोले शाह के चूहे

डोले शाह के चूहे :पाकिस्तान में 400 सालों से चल रहा है दरगाह में बच्चों को मंदबुद्धि बनाकर बनाने का काम!

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डोले शाह के चूहे : अंधविश्वास एक ऐसी चीज है जो इंसान को आंख होते हुए भी अंधा बना देती है। वैसे आपने अंधविश्वास से जुड़ी हुई तो बहुत सी बातें सुनी और देखी होंगी। मगर आज मैं आपको पाकिस्तान में होने वाले एक खौफनाक अंधविश्वास के बारे में बताने जा रहा हूं।

दरअसल, पाकिस्तान के पंजाबी प्रांत के गुजरात जिले में डोले शाह की दरगाह है।

यहां ऐसी परंपरा है कि बांझ औरते मन्नत मांगने के बाद जब उन्हें पहला बच्चा होता है तो वह पहले बच्चे को दरगाह पर ही छोड़ देती है। दरगाह प्रशासन इन बच्चों से भीख मंगवाता है और अपना खजाना भरता है।

यह परंपरा करीब 400 सालों से चली आ रही है। इन बच्चों को ‘ डोले शाह के चूहे’ कहा जाता है। अब ऐसा क्यों कहा जाता है इसे जानने के लिए आप पोस्ट को आखिर तक पढ़े।

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आइए मैं आपको डोले शाह के चूहे के बारे में विस्तार से बताता हूं।

डोले शाह के चूहे| (Rats of Shah Dola)

डोले शाह के चूहे
डोले शाह के चूहे 

दरअसल औरंगजेब के जमाने से यह सब शुरू हुआ। उस समय डोले साहब नाम के पीर हुआ करते थे। वे यह दावा करते थे कि वह बांझ औरतों का इलाज कर सकते हैं पर साथ में यह भी शर्त रखते की उनके पहले बच्चे को उन्हें दरगाह पर ही छोड़ना होगा ताकि वह पीर की सेवा कर सके।

धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि बढ़ती गई और है और वे अपनी उम्र को पूरा करते हुए उनकी मौत हुईं उसके के बाद भी यह प्रथा चलती रहे और आज भी पाकिस्तान में इस प्रथा का पालन होता है।

एक अनुमान के मुताबिक करीब 400 सालों में 1 लाख से भी ज्यादा बच्चे बांझ औरतों के द्वारा छोड़े जा चुके हैं। यह बच्चे दरगाह पर अपना पूरा जीवन बिताते हैं और यहां वहां भीख मांग कर दरगाह के लिए पैसा कमाते हैं।

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डोले शाह के चूहे ऐसा नाम क्यों?

जो बच्चों को यहां छोड़ा जाता है उन्हें डोले शाह के चूहे कहा जाता है। आपके मन में सवाल होगा कि ऐसा क्यों? तो आपको जानकर हैरानी होगी कि इन बच्चों को बचपन से ही सिर पर लोहे की टोपी पहनाई जाती है और कई सालों तक रखा जाता है जिससे इनका सिर छोटा हो जाता है और मानसिक विकास भी नहीं हो पाता जिससे परिणाम स्वरूप यह बच्चे मंदबुद्धि होते हैं और अंत में यह बच्चे तो बड़े हो जाते हैं मगर इनका सिर छोटे बच्चे जैसा ही रह जाता है जो देखने में चूहे की तरह लगते हैं इसीलिए इन बच्चों को डोले शाह के चूड़े कहा जाता है।

इस प्रथा को बंद कराने की अंग्रेज अफसरों की नाकाम कोशिश।

औरंगजेब और बाकी मुगल राजाओं के समय इस प्रथा का विरोध नहीं हुआ क्योंकि वह खुद मुसलमान थे और उन्होंने इसे बंद कराने के लिए कोई कोशिश नहीं की।

मगर जब अंग्रेजों को जब पता चला कि इस प्रथा के आड़ में आड़ में अमानवीय काम जैसे सिर पर लोहे की टोपी पहनाना और बच्चों से भीख मनवा मंगवाना हो रहा है तो इसे रोकने की कोशिश की मगर सबूत ना होने के कारण और कोई भी गवाही देने के लिए तैयार ना था जिसके लिए यह प्रथा बंद ना हो सकी।

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बाद में अंग्रेज अफसरों ने इसे ‘ माइक्रोसेफली’ बीमारी बताया। पर साथ ही बहुत बड़ा सवाल छोड़ गए कि आखिर दरगाह पर रह रहे बच्चों को ही यह बीमारी क्यों हो रही है? इतिहासकारों के अनुसार अंग्रेज इस बीमारी का बहाना बताकर अपना पल्ला झाड़ रहे थे।

पाकिस्तानी सेना प्रमुख की नाकाम कोशिश

वर्षों से चली आ रही या अमानवीय अंधविश्वास यूं ही चलती रहीं पर 1969 में पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल अयूब खान ने इसे बंद कराया मगर उनकी यह पाबंदी ज्यादा सालो तक नहीं चली 1977 में नए तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल ज़िया उल हक़ ने पूरे पाकिस्तान का इस्लामीकरण किया। जिससे यह दरगाह भी इस्लाम के नाम पर अपनी बरसों पुरानी मान्यता को फिर से शुरू कर दिया और अभी तक यहां बच्चे दान करने की परंपरा चली आ रही है।

10 हजार शाह के चूहे दरगाह के खजाने के लिए भीख मांगते हैं।

क्योंकि डोले शाह के चूहे मंदबुद्धि होते हैं इसीलिए उनसे कोई और काम नहीं करवाया जा सकता अतः उन से भीख मंगवाया जाता है और वह भीख मांगते दरगाह के खजाने को भरते हैं एक अनुमान के मुताबिक आज के समय में उनके पास करीब 10000 ऐसे बच्चे हैं इनमें लड़की और लड़कियां दोनों है।

 

आशा करता हूं कि आपको डोले शाह के चूहे के विषय में जानकर आश्चर्य हुआ होगा और थोड़ा दुख भी हुआ होगा कि इन बच्चों के साथ अमानवीय व्यवहार हो रहा है। मैं आपसे गुजारिश करता हूं कि आप इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि लोगों को डोले शाह के चोरों के बारे में पता चल सके।

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आखरी शब्द

आश्चर्य होता है कि 21वीं सदी में भी कुछ ऐसे लोग हैं जो इतनी बड़ी अंधविश्वास का शिकार हैं और पाकिस्तान सरकार बच्चों का शोषण होने से क्यों नहीं रोक रही यह सवाल बहुत बड़ा है? मुझे तो ऐसा लगता है कि पाकिस्तान के लोग और वहां की सरकारों पर इस्लामीकरण का ऐसा मोटा चश्मा चढ़ा है कि उन्हें सच दिखाई ही नहीं देता।

मुझे दुख इस बात का नहीं है कि पाकिस्तान सरकार कुछ बड़ा कदम क्यों नहीं ले रही बस दुख इस बात का है कि 21वीं शताब्दी में भी लोग इतने बेवकूफ कैसे हो सकते हैं जो अपने बच्चे को ऐसी जगह छोड़ते हैं जहां उनका भरपूर शोषण हो और मैं मंदबुद्धि बनेंगे। क्योंकि हिंदू और जैन जैसे धर्मों में भी बच्चों को दान करने की परंपरा है मगर उन्हें भगवान का सेवक और संत बनाया जाता है ना कि मंदबुद्धि और भीख मांगने वाला।

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