क्या आप दुनिया की सबसे महंगी कॉफी पीना पसंद करेंगे? शायद इस पोस्ट को पढ़ने के बाद नहीं!
जी हां, आज हम बात करेंगे दुनिया की सबसे महंगी कॉफी विशेष ‘कोपी लूवक’ या ‘सिवेट कॉफी’ कहा जाता है।
यह कॉफी बिल्ली के मल से बनाया जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस कॉपी की मांग पूरी दुनिया भर में बढ़ती जा रही है। इसकी कीमत जानकर आप हैरान हो जाएंगे।
तो चलिए, आज हम TOP GYAN के इस आर्टिकल में आपको कोपी लूवक के बारे मैं बताता हूं।
कोपी लूवक कैसे बनता है?
इस कॉफी को बनाने के लिए एक खास तरह की बींस का उपयोग होता है। जिसे ‘रेड कॉफी बींस’ कहा जाता है। यह किसी पेड़ का फल नहीं, बल्कि एक बिल्ली का मल है। जिसे ‘पाम सिवेट कैट‘ कहा जाता है।
जी हां, आपने सही पढ़ा वैसे तो यह बिल्ली पहले जंगलों में पाई जाती थी। मगर मांग अधिक होने की वजह से इसे पिंजरे में रखा जाता है। और इसकी आबादी कैसे बढ़ाई जाए इस विषय पर रिसर्च की जा रही है। इस खास तरह की कॉपी को “सिवेट कॉफी’ भी कहा जाता है।
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सिवेट कैट के मल से कॉफी कैसे बनता है?
यह बिल्ली विशेष तौर से इंडोनेशिया के जंगलों में पाई जाती है।यह एक खास तरह की कॉफी बींस को खाती है। वह जितने भी बींस को खाती है उनमें से सभी को नहीं पचा पाती है इसीलिए वह मल के जरिए बिना पचे हुए बींस को बाहर निकाल देती है।
इसी मल के जरिए निकले हुए बींस को धो कर सुखा कर बनता है। कोपी लूवक जो दुनिया की सबसे महंगी कॉफी में से एक है
महंगा क्यों है?
जाहिर सी बात है की इसका उत्पादन कम है और मांग अधिक इसीलिए इसकी कीमत ज्यादा है।
मगर एक यही कारण नहीं है और भी ढेर सारे कारण है जिसकी वजह से काफी लोगों को कितनी महंगी है। जैसे कि कॉफी को बनाने के लिए काफी लंबी चौड़ी प्रोसेस होती है। जो बेहद खर्चीली है सिवेट कैट को पालना पड़ता है जो बेहद खर्चीला है।
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कोपी लूवक की कितनी कीमत है?
वैश्विक बाजार में इसकी कीमत 20,000 से 25,000 प्रति किलो है।भारतीय रुपए के मुताबिक!
अमीरों की पहली पसंद!
जाहिर सी बात है महंगे होने के कारण यह अमीरों की पहली पसंद बन गई है खाड़ी देश जैसे कि अमेरिका यूरोप में इसकी काफी मांग है। हालांकि भारत में भी इस की मांग बढ़ती जा रही है।
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भारत में भी उत्पादन!
हमारे अपने देश भारत में भी इस कॉफी का उत्पादन शुरू हुआ है। कर्नाटक राज्य में इसका पहला प्लांट लगाया गया है।
‘कूर्ग कॉन्सोलिटेड कमोडिटी'(CCC)नाम की संस्था ने यह काम किया है। इस संस्था के संस्थापक ने बताया कि वर्ष 2015-16 में 60 किलो कॉफी का उत्पादन हुआ। जबकि 2016-17 में 200 किलो कॉफी का उत्पादन हुआ और वर्ष प्रतिवर्ष इसकी क्षमता बढ़ती जा रही है।
कॉफी लुवाक का इतिहास
आपके मन में यह सवाल होगा कि आखिर इतना अजीबो-गरीब कॉफी पीने की शुरुआत कहां से हुई?तो चलिए इसके पीछे में बेहद दिलचस्प कहानी है।
मैं आपको बताता हूँ यह बात 18 शताब्दी की है जब इंडोनेशिया में डच प्रजा का शासन था। वह कॉफी पीने के बेहद शौकीन थे।इसके लिए उन्होंने इंडोनेशिया में काफी सारे कॉफी के बागान लगाए थे।
कॉफी कॉफी के बागान में काम करने वाले मजदूरों पर यह नियम लगा दिया गया कि कोई भी कॉपी नहीं पिएगा! यहां तक की जमीन पर गिरी हुई कॉफी बींस को भी कोई हाथ नहीं लगाएगा। मगर वहां के लोगों को कॉपी की लत लग गई थी। उन्होंने कॉफी पीने के लिए दूसरी जुगाड़ लगाइ।
उन्हें पता था कि यही कॉफी बींस सिवेट कैट खाती हैऔर वे सभी कॉफी बींस को नहीं पचा पाती।इसीलिए उन्होंने इस बिल्ली के मल में से बचे हुए कॉफी बींस को धोकर सुखा कर पीना शुरू किया। उन्होंने यह भी देखा कि पहले से इसका स्वाद काफी ज्यादा अच्छा है। धीरे-धीरे यह बात डच लोगों को ही पता चली और उन्होंने भी यहां कॉफी पीने की शुरू की।
कितना रोचक है ना कोपी लूवक का इतिहास!
शरीर के लिए फायदेमंद है
यह अजीब गरीब कॉफी शरीर के लिए बेहद फायदेमंद है। आइए मैं आपको कुछ फायदे बता देता हूं।
- पाचन क्रिया ठीक रखता है।
- इस पीने से पेट साफ हो जाता है।
- हाइपरटेंशन से भी बचाता है।
आखिर शब्द
तो आज हमने इस पोस्ट में कॉफी लूवक के विषय में चर्चा की मैंने आपको बताया कि यह कॉफी को बनाने की प्रक्रिया कितना अजीब और गंदा है। फिर भी यह खाड़ी देशों में प्रसिद्ध है। हमने यहां इसके इतिहास के बारे में भी चर्चा की। इसके कुछ फायदे भी जाने। आशा करता हूं आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी।
मेरे विचार
जब यह कॉफी केवल वहां के स्थानीय लोगों तक ही सीमित थी। तब इस कॉफी बींस को पाने के लिए लोग जंगल में जाते थे।
बिल्ली के मल में से कॉफी बींस को ढूंढ के लाते थे। मगर आज यह एक व्यवसाय बन चुका है। इसीलिए बिल्लियों को जंगलों से पकड़कर छोटे से पिंजरे में रखा जाता है जो बिल्लियों की आजादी को खत्म करता है। हमने अपने फायदे के लिए उसे कैदी बना दिया है।
एनिमल एक्टिविस्ट कड़ा विरोध किया कि कम से कम इन को खुले जगह में रखा जाए। मगर उसका भी कोई फायदा नहीं हुआ।
वैसे यह कोई नई बात नहीं है। हम इंसानों ने अपने फायदे के लिए दूसरे जीवो पर काफी अत्याचार किया है।
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Hi,मै अंकित शाह हूँ। मै इस वेबसाइट का मालिक और लेखक हूँ। पेशे से में एक लेखक और छोटा बिजनेसमैन हूं । मैं 20 साल का हूं और लेखन में मेरी काफी रूची है वैसे तो मैं मूल रूप से छपरा बिहार का हूं मगर मेरी कर्मभूमि सूरत गुजरात है।
भाई वाह! कमाल की जानकारी लाए हैं आप!!