औरंगजेब का इंसाफ: औरंगजेब भले ही हिंदू विरोधी राजा था। उसने अपने शासनकाल में बहुत से मंदिरों को तुड़वाया था। अगर इतिहास के पन्नों को ध्यान से देखा जाए, तो औरंगजेब का इंसाफ बहुत ही अच्छा होता था इसका एक उदाहरण आज के इस पोस्ट में मैं बताऊंगा। आज मैं आपको बताऊंगा कि कैसे एक हिंदू पंडित की बेटी के साथ औरंगजेब ने इंसाफ किया। जिससे हिंदुओं ने धनेड़ा मस्जिद का निर्माण कराया तो चलिए जानते हैं कि वह कौन सा औरंगजेब का इंसाफ था।
औरंगजेब का इंसाफ!|Aurangzeb’s justice
बनारस यानि की वर्तमान समय के वाराणसी में एक पंडित रहता था l उसकी एक लड़की जिसका नाम शकुंतला था।
शकुंतला रूप से बहुत सुंदर थी। उसकी सुंदरता से एक मुसलमान सेनापति मोहित हो गया और उस पंडित से कहां की “अपनी बेटी को डोली में सजा के मेरे महल पर 7 दिन के अंदर भिजवा देना”।
पंडित बहुत ही साधारण इंसान था। इसीलिए वह कुछ नहीं कर सका सेनापति की बात मान ली और घर जाते के सारी बात अपनी बेटी को बताई। बेटी ने कहा कि आप सेनापति से 1 महीने का वक्त मांगे! हम लोग कोई ना कोई रास्ता निकाल लेंगे।
पंडित सेनापति के घर गया और कहा कि आप मुझे 1 महीने का वक्त दीजिए। इससे सेनापति मैं कहा ठीक है जाओ मगर एक महीने बाद जरूर ले आना।
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शकुंतला ने अपनी समस्या का समाधान करने के लिए दिल्ली निकल पड़ी। उसने लड़के का रूप धारण किया हुआ था। जब वह दिल्ली पहुंची तब बादशाह औरंगजेब जुम्मे की नमाज अदा करके मस्जिद से निकल रहे थे। उस समय ऐसा नियम था कि बादशाह है जब भी नमाज पढ़कर मस्जिद से निकलेंगे तब फरियादी अपनी अपनी फरियाद कागज पर लिखकर बादशाह को दे देंगे। कुछ ही समय में उन सभी पर फरियादो का निपटारा हो जाता था।
शकुंतला भी उसी लाइन में अपनी फरियाद लेकर खड़ी हो गई। बादशाह औरंगजेब ने जब शकुंतला के हाथ से कागल लेने की बारी आई तब औरंगजेब ने कपड़ा रख कर उस लड़की के हाथ से कागज लिया।
शकुंतला को यह चीज बहुत अजीब लगी उसने तुरंत पूछ लिया कि मेरे साथ यह भेदभाव क्यों? तब औरंगजेब ने कहा कि “इस्लाम में पराई औरत को हाथ लगाना हराम है। और तू एक लड़की हुई है लड़का नहीं”!
औरंगजेब ने लड़की की समस्या पढ़ी, क्योंकि उसकी समस्या गंभीर थे इसीलिए औरंगजेब उसे अपने साथ महल ले गए। कुछ दिनों के बाद औरंगजेब ने कहा कि “तू लौट जा बेटी, तेरी डोली सेनापति के महल समय पर पहुंचेग”। शकुंतला कुछ समझ नहीं पाई पर फिर भी वह वापस अपने घर लौट गई।
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उसने घर आकर घरवालों को सारी बात बताई। सभी को कुछ समझ नहीं आ रहा था की बादशाह ने ऐसा क्यों कहा! अंत में वह दिन आया पंडित ने शकुंतला को डोली में सजाकर सेनापति के महल भिजवा दिया। जैसे ही शकुंतला की डोली सेनापति के महल के पास पहुंची तो सेनापति खुशी के मारे फकीरों में पैसा लुटाने लगा।
उन सभी फकीरों में से एक फकीर ने सेनापति से जाकर कहा मैं साधारण फकीर नहीं हूं मुझे पैसे हाथ में दो! यह बात सुनकर सेनापति क्रोधित हो गया। मगर अगले ही पल उस फकीर ने अपनी असलियत सेनापति को दिखाएं जिससे सेनापति के होश उड़ गए। दरअसल वह फकीर और कोई नहीं बादशाह औरंगजेब ही था। औरंगजेब ने कहा कि “तू मुगलिया सल्तनत पर दाग लगा रहा था” बादशाह ने सजा फरमाया!
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सेनापति को मौत की सजा दी गई। वह भी बहुत अजीब तरीके से! 4 हाथियों को बुलाया गया और सेनापति के दोनों हाथ पैर को हाथियों से बांध दिया गया। चारों हाथियों को अलग-अलग दिशा में दौड़ा दिया के सेनापति का शरीर चार टुकड़ों में बट गया।
उसके बाद औरंगजेब ने एक गिलास पानी पिया और कहा कि मैंने जिस दिन शकुंतला की फरियाद सुनी थी उस दिन याद तय किया कि “मैं जब तक इंसाफ नहीं करूंगा तब तक पानी नहीं पाऊंगा”!
पंडित के घर के बाहर औरंगजेब ने नमाज पढ़ी। पंडित और आसपास के रहने वाले हिंदुओं ने औरंगजेब के इंसाफ से खुश होकर मस्जिद का निर्माण करवाने की की सोची। इसीलिए जिस जगह पर औरंगजेब ने नमाज पढ़ी थी वहीं पर धनेरा का मस्जिद बनवाया गया। सोने की प्लेट पर औरंगजेब का इंसाफ की दास्तान लिखी गई।
मेरे विचार
भले ही औरंगजेब में लाख बुराई थी। मगर औरंगजेब का इंसाफ को हमें नहीं बुलाना चाहिए। इसीलिए हम औरंगजेब का यह इंसाफ के विषय में आपको बताना जरूरी था। मैं यह भी मानता हूं, कि औरंगजेब हिंदू विरोधी शासक था। उसने अपने शासनकाल में हिंदुओं पर जजिया टैक्स लगाया और अनेकों मंदिर को तुड़वाया!
आखरी शब्द
तो आज के इस पोस्ट में मैंने आपको औरंगजेब के इंसाफ के दास्तां सुनाई उम्मीद है उम्मीद है की आपको यह पोस्ट पसंद आया होगा आप ऐसी अद्भुत जानकारी अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें।
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Hi,मै अंकित शाह हूँ। मै इस वेबसाइट का मालिक और लेखक हूँ। पेशे से में एक लेखक और छोटा बिजनेसमैन हूं । मैं 20 साल का हूं और लेखन में मेरी काफी रूची है वैसे तो मैं मूल रूप से छपरा बिहार का हूं मगर मेरी कर्मभूमि सूरत गुजरात है।