sas bahu temple : दोस्तों हमारे देश में आपको अलग अलग तरीके के ढेर सारे छोटे बड़े मंदिर मिल जाएंगे, हर मंदिरों की अपनी एक अलग विशेषता होती है। मगर क्या आपको पता है कि राजस्थान के ग्वालियर में एक मंदिर ऐसा भी है जिसका नाम सास बहू मंदिर है बेशक इस मंदिर में भगवान विष्णु और शिवजी की पूजा होती है मगर इस मंदिर का नाम बहुत ज्यादा अजीब है दरअसल इस मंदिर के पीछे की कहानी बहुत ही ज्यादा दिलचस्प है तो लिए इस पोस्ट के जरिए हम आपको सास बहू मंदिर के बारे में विस्तार से बताते हैं।
हाईलाइट
- इस मंदिर के मूर्ति को मुगलों ने खंडित किया था।
आजादी से पहले इस मंदिर को अंग्रेजों ने फिर से चालू करवाया था। - इस मंदिर को अंग्रेज mother in law and daughter in law टेंपल के नाम से जानते थे।
- गांव के लोग इसे जुड़वा मंदिर भी कहते हैं।।
मंदिर का असली नाम सहस्त्रबाहु मंदिर था।
सास बहू मंदिर
राजस्थान के ग्वालियर के नालंदा गांव में एक बहुत ही खूबसूरत कला स्थापत्य वाला मंदिर है। वैसे तो यह मंदिर मैं भगवान शिव और विष्णु की पूजा होती है मगर लोग इसे सास बहू मंदिर के नाम से जानते हैं। हालांकि इस मंदिर का नाम शुरुआत से ही सास बहू मंदिर नहीं था पहले इसे सहस्त्रबाहु मंदिर के नाम से जाना जाता था। इतिहास पर एक नजर डालते हैं।
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सास बहू मंदिर का इतिहास
इस मंदिर को साल 1093 में कच्छ पालघाट वंश के राजा महिपाल ने करवाया था। हालांकि यह दो अलग-अलग मंदिर एक ही जगह पर है। जिसमें से एक मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित है तो वहीं दूसरे मंदिर में भगवान शिव की पूजा होती है। इस मंदिर का शुरुआती नाम सहस्त्रबाहु मंदिर और हरीशदास मंदिर था। हमको मंदिर के इतिहास को अच्छे से समझने के लिए हमें सास बहू मंदिर की कहानी को जानना पड़ेगा जो बेहद दिलचस्प रहे तो आईए जानते हैं।
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सास बहू मंदिर की कहानी
सास बहू मंदिर की कहानी बहुत ही ज्यादा दिलचस्प है। राजा महिपाल की पत्नी भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्ति इसीलिए राजा महिपाल अपनी पत्नी के लिए भगवान विष्णु का मंदिर बनवाया था, ताकि वे अपने प्रिया भगवान विष्णु की पूजा कर सके! पर समय बीतने के साथ महारानी के पुत्र का विवाह हुआ और उनकी पुत्रवधू भगवान शिव की पूजा करती थी। इसीलिए राजा ने अपनी बहू के लिए उसी मंदिर के बाजू में एक और मंदिर बना दिया उस समय दोनो मंदिर का नाम सहस्त्रबाहु मंदिर रखा गया।
समय के साथ साथ लोग इसे सास बहू मंदिर के नाम से बुलाने लगे क्योंकि आख़िर तो यह मंदिर एक सास और एक बहू के लिए ही बनाया गया था और यही नाम प्रसिद्ध हो गया। दुनिया भर में मंदिर को यही नाम से जाना जाने लगा।
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मुगलों ने भी सास बहू मंदिर को नष्ट किया था।
इस मंदिर को लेकर इतिहासकारों का मानना है कि जब मुगल भारत आए थे कब उन्होंने इस मंदिर पर अपना कब्जा जमा लिया था और भगवान शिव और विष्णु के अलावा बहुत सी मूर्तिययो को खंडित कर दिया था। इस मंदिर को रेट और चूने से ढकवा दिया था जिसे पूरा मंदिर देखकर बाहर रेत के पहाड़ तरह लग रहा था। मगर मुगलों के शासन काल के बाद जब अंग्रेज भारत आए तो वह इस मंदिर को फिर से शुरू करवाया और आम लोगों के लिए खोल दिया।
सास बहू मंदिर की बनावट (सास बहू मंदिर की कला स्थापत्य)
ऐसा नहीं है यह मंदिर सिर्फ अपने अजीबोगरीब नाम के लिए प्रसिद्ध है बल्कि यह अपनी वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है।
सास बहू मंदिर तीन मंजिलों वाला है और इस मंदिर की नींव की लंबाई चौड़ाई करीब 30 मीटर है इतिहासकारो के अनुसार यह उत्तर भारतीय भूमिजा शैली का उपयोग करके बनाया गया है l
दरअसल इस शैली में छोटे-छोटे शिखर से मंदिर के मुख्य शिखर बनाया जाता है। इस मंदिर में कुल तीन प्रवेश द्वार है जो अलग-अलग दिशाओं में है मंदिर के गर्भगृह में भी बहुत ही बारीक नक्काशी की गई है भगवान विष्णु के मूर्ति के बाजू में ब्रह्मा जी की भी मूर्ति स्थापित हुई है और वहीं दूसरी तरफ भगवान शिव की मूर्ति स्थापित की गई इसके अलावा दीवारों पर ब्रह्मा विष्णु और सरस्वती माता उनका चित्र बनाया गया है।
दोस्तों दुख की बात यह है कि बहुत बार युद्ध अथवा आक्रमण के कारण इस मंदिर के गर्भ गृह खंडित हो चुका है।
सास बहू मंदिर कैसे जाएं?
सास बहू मंदिर पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले ग्वालियर पहुंचना होगा आप ट्रेन अथवा हवाई जहाज से भी आ सकते हैं। वहां से आपको बस अथवा टैक्सी मिल जाएगी जो सिर्फ रेलवे स्टेशन से दो-तीन किलोमीटर की दूरी पर है।
आखिरी शब्द
दोस्तों आज किस पोस्ट में हमने सास बहू मंदिर के बारे में जाना और साथ में इस मंदिर के रोचक कहानी और इसके वास्तुकला के बारे में भी जाना! आशा करता हूं कि आपको इस मंदिर की जानकारी अच्छी लगी होगी और क्या कभी आपको मौका मिले तो आप इस मंदिर में दर्शन करने जाएंगे या नहीं हमें कमेंट करके बताइए।
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Hi,मै अंकित शाह हूँ। मै इस वेबसाइट का मालिक और लेखक हूँ। पेशे से में एक लेखक और छोटा बिजनेसमैन हूं । मैं 20 साल का हूं और लेखन में मेरी काफी रूची है वैसे तो मैं मूल रूप से छपरा बिहार का हूं मगर मेरी कर्मभूमि सूरत गुजरात है।