क्या आपने कभी भी गुरुद्वारे में लंगर में खाना खाया है? अगर खाना खाया है तो आप बहुत भाग्यशाली हैं। पर क्या आपके मन में सवाल आया है कि आखिर सिखों की लंगर प्रथा का क्या इतिहास है? इसकी शुरुआत क्यों हुई? आज के इस पोस्ट में हम किसी के विषय में गहराई से अध्ययन करते हैं।
लंगर प्रथा क्या है?
आमतौर पर सिख धर्म में लंगर मतलब यह हैं की एक रसोई जिसमें बिना कोई भेदभाव जाति पार्टी ऊंच-नीच के हर कोई आकर अपने पेट की आग मिटा सके, वह भी बिना मूल्य के! लंगर प्रथा एक तरह की निशुल्क भोजन सेवा होती है जो जो हर गुरुद्वारे में अनिवार्य रूप से होती है।
लंगर में हर कोई सेवा दे सकता है।चाहे वह स्त्री हो या पुरुष चाहे वह किसी भी धर्म का हो गुरुद्वारे के अलावा विशेष तीर्थ त्योहारों पर भी सिख धर्म के लोग लंगर का आयोजन करते हैं।
सिखों की लंगर प्रथा का क्या इतिहास है?
सिखों की लंगर प्रथा कब से शुरू है? इसकी शुरुआत कैसे शुरू हुई? इसके पीछे बहुत ही रोचक कहानी है, दरअसल सिख धर्म में लंगर प्रथा की शुरुआत सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी ने अपने घर से ही की थी। एक बार जब गुरु नानक देव जी के पिता ने उनके हाथ में कुछ पैसे दिए और कहा कि बाजार से कुछ सौदा करके पैसे कमा कर लाओ। तब जैसे ही गुरु नानक देव जी घर से निकले रास्ते में उन्हें एक भिखारी मिला उन्होंने सारे पैसे उस भूखे भिखारी को खिलाने में खर्च कर दिया। घर खाली हाथ लौट आए। पिता के द्वारा सवाल करने पर उन्होंने कहा कि “सच्चा लाभ तो सेवा करने में ही है”।
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गुरु नानक जी ने लंगर के विषय में क्या कहा था?
गुरु नानक जी कहते थे कि “अमीर-गरीब जाती-पाती ऊंचा-नीचा यह सबसे ऊपर भूख है, जो भूखा है उसे खाना खिलाओ”।
गुरु नानक जी ने नारा दिया की “कीरत करो, वंड छको” इसका मतलब होता है फिर “खुद मेहनत करो और सब में बात कर खाओ”।
स्वर्ण मंदिर के 4 दरवाजे क्या कहते हैं?
स्वर्ण मंदिर में चार दरवाजा है, जो यह संदेश देते हैं कि यह मंदिर हर किसी के लिए खुला हुआ है। यहां पर होने वाले लंगर हर किसी के लिए है चाहे वह अमीर हो या गरीब हो लंगड़ा हो या लूला हो ऊंची का हो या नीची जाति का यह मंदिर और यहां लगने वाला लंगर हर किसी के लिए खुला है।
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लंगर प्रथा का क्या महत्व है?
- लंगर एक तरीके का सामाजिक सेवा है जिसमे इंसानियत के नाते हर भूखे को खाना खिलाया जाता है।
- लंगर दूसरे धर्म के प्रति भाईचारा बढ़ाने की एक कोशिश होती है
- लंगर के जरिए अमीर गरीब ऊंच-नीच भेदभाव खत्म कर ले के लिए इसकी शुरुआत की गई थी
- लंगर में हर कोई जमीन पर बैठकर और भोजन मांग कर खाता है जिससे एक दूसरे के प्रति हीन भावना खत्म होती है
दुनिया का सबसे बड़ा लंगर!
यूं तो दुनिया भर में जितने भी गुरुद्वारे हैं उन सभी में लंगर होता है। मगर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर जिसे गोल्डन टेंपल भी कहा जाता है। यहां दुनिया का सबसे बड़ा लंगर होता है। एक अनुमान के मुताबिक यहां पर रोजाना एक लाख लोगों को निशुल्क भोजन कराया जाता है।
अनुमान के मुताबिक स्वर्ण मंदिर में रोज के 500 किलो देसी घी, 70 से 80 क्विंटल आटा, 20 क्विंटल दाल सब्जियां और100 गैस सिलेंडर के साथ-साथ लकड़ियों का भी उपयोग होता है।
आखिरी शब्द
आज के इस पोस्ट में हमने जाना कि सिखों की लंगर प्रथा का क्या इतिहास है? और इसका क्या महत्व है? उम्मीद है कि आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी। आपने कभी किसी भी गुरुद्वारे में खाना खाया है तो हमें कमेंट करके जरूर बताइए।
मेरे विचार
हर रोज हर गुरुद्वारे में सैकड़ों से लाखों लोगों को खाना खिलाना कोई आसान काम नहीं होता है। इससे यह पता चलता है कि सिखों को अपने धर्म के प्रति कितना लगाव है। व्यक्तिगत रूप से कहूं तो मैंने भी कई बार लंगर में खाना खाया है। वहां मौजूद लोग हर को चीज दिल और प्रेम भावना से हर किसी को भोजन कराते है | यह कोई यह नहीं देखता की हिंदू है या मुस्लिम बस सभी को खाना खिलाना है।
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Hi,मै अंकित शाह हूँ। मै इस वेबसाइट का मालिक और लेखक हूँ। पेशे से में एक लेखक और छोटा बिजनेसमैन हूं । मैं 20 साल का हूं और लेखन में मेरी काफी रूची है वैसे तो मैं मूल रूप से छपरा बिहार का हूं मगर मेरी कर्मभूमि सूरत गुजरात है।